रविवार, 28 अगस्त 2022

ट्विन कविता

ट्विन कविता

इंतजार

वो छत

सर पर बोझ थे

उसके पिलर मेरी कोख में गड़े थे

सीने पर रखे थे पत्थर

हर जगह से मैं

टूटी हुई थी

फिर भी आंखे खोल

मैं पड़ी रही

इंतजार में

फासला

मैंने गिरा दी है वो दीवार

जो हमारे दरम्यां थी

मैंने उठा दिया है वो पर्दा

जो हवाओं से उलझते थे

उजाड़ दी है वो बस्ती भी

जहां से गिद्ध तुम्हें तकते थे

अब कोई नहीं है

दरम्यां हमारे

सिर्फ फासला है

 


17 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut khoob. Shabdon ki shakti bahut kam logon ke paas hoti hai. Kahna atishyokti nahi hogi ki is mamle me aap bahubali hain. Kramshah ki agli kadi ki pratiksha rahegi..hu sab ko!!

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  2. पंक्तियां ट्विन टावर के दर्द को बखूबी बयां करती है जो भ्रष्टाचार की वजह से जमींदोज कर दी गई।

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  3. बहूत ख़ूबसूरत लिखा है ♥️

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  4. यह हमारी जिंदगी की अभिव्यक्ति है।।

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  5. वाह
    लेखनी को प्रणाम

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  6. छोटी मगर भावनाओं से भरे शब्द, वास्तविकता इस बिलकुल निकट 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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  7. इन रचनाओं में एक पत्रकार की दृष्टि,कवि हृदय के भाव और एक बुद्धिजीवी इंसान के विवेक का संगम होता हुआ महसूस हुआ। मेरी शुभेच्छा है कि यह वृहद् पाठक समुदाय तक पहुंचे और उनके दिलों को छूए।

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