ट्विन कविता
इंतजार
वो छत
सर पर बोझ थे
उसके पिलर मेरी कोख में गड़े थे
सीने पर रखे थे पत्थर
हर जगह से मैं
टूटी हुई थी
फिर भी आंखे खोल
मैं पड़ी रही
इंतजार में
फासला
मैंने गिरा दी है वो दीवार
जो हमारे दरम्यां थी
मैंने उठा दिया है वो पर्दा
जो हवाओं से उलझते थे
उजाड़ दी है वो बस्ती भी
जहां से गिद्ध तुम्हें तकते थे
अब कोई नहीं है
दरम्यां हमारे
सिर्फ फासला है
Bahut khoob. Shabdon ki shakti bahut kam logon ke paas hoti hai. Kahna atishyokti nahi hogi ki is mamle me aap bahubali hain. Kramshah ki agli kadi ki pratiksha rahegi..hu sab ko!!
जवाब देंहटाएं🙏
हटाएंShandaar
हटाएंअद्भुत सर
हटाएंTwin Tower ka sach ya zindgi ka sach. Bhoot khoob..
जवाब देंहटाएंBahut khoob 👌👌
जवाब देंहटाएंपंक्तियां ट्विन टावर के दर्द को बखूबी बयां करती है जो भ्रष्टाचार की वजह से जमींदोज कर दी गई।
जवाब देंहटाएंDK
जवाब देंहटाएंबहूत ख़ूबसूरत लिखा है ♥️
जवाब देंहटाएंयह हमारी जिंदगी की अभिव्यक्ति है।।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंलेखनी को प्रणाम
छोटी मगर भावनाओं से भरे शब्द, वास्तविकता इस बिलकुल निकट 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंVery nice. Great feeling,!
जवाब देंहटाएंBeautiful ❤️
जवाब देंहटाएंइन रचनाओं में एक पत्रकार की दृष्टि,कवि हृदय के भाव और एक बुद्धिजीवी इंसान के विवेक का संगम होता हुआ महसूस हुआ। मेरी शुभेच्छा है कि यह वृहद् पाठक समुदाय तक पहुंचे और उनके दिलों को छूए।
जवाब देंहटाएंTouching
जवाब देंहटाएंKya khoob likhte hai aap!
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