रविवार, 3 जुलाई 2022

पुरखों के निशान

 

पुरखों के निशान


सीख गया हूं जीना डूब कर तुझमें

मत करो बाहर...मर जाउंगा

 

मत झांको मुझमेंरोशनी बन के

बुझा दो चिराग़...छिप जाउंगा

 

तुफान से डर कर...किश्ती मत छोड़ना

नेकियां भी दरियां से...निकलते हैं एक दिन

 

पुरखों ने रास्ते...आसान किए हैं मेरे

पगडंडियों पर मुझे...उनके निशान दिखते हैं

 

रास्ते हमसफर नहीं हैं...बलात् चलते हैं साथ

चाहिए मंजिल...तो हमसफर ढूंढ़िए

 

बला की परछाई...मेरे पीछे चलती है

बन के रोशनी जब...वो मेरे आगे चलती है

 

 

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