पुरखों
के निशान
सीख गया हूं जीना डूब कर तुझमें
मत करो बाहर...मर जाउंगा
मत झांको मुझमें…रोशनी बन के
बुझा दो चिराग़...छिप जाउंगा
तुफान से डर कर...किश्ती मत छोड़ना
नेकियां भी दरियां से...निकलते हैं एक दिन
पुरखों ने रास्ते...आसान किए हैं मेरे
पगडंडियों पर मुझे...उनके निशान दिखते हैं
रास्ते हमसफर नहीं हैं...बलात् चलते हैं साथ
चाहिए मंजिल...तो हमसफर ढूंढ़िए
बला की परछाई...मेरे पीछे चलती है
बन के रोशनी जब...वो मेरे आगे चलती है
Bahut khoob👌👌
जवाब देंहटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएं