जठराग्नि
अंतड़ियां जल रही है
सांसें धुआं
जुबान रेत हैं
आंखें दरिया
घिरा है आग से
लहक है
चारों ओर
फिर भी जिंदा है
भूख
पेट में
बनकर प्रह्लाद
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रोशनी
खुद ही माटी हैं
खुद ही कुम्हार
खुद ही दीया हैं
खुद ही बाजार
खुद ही बिकना है
खुद ही खरीददार
रोशनी व्यापार है
जलना है हर बार
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Wah.. Wah... Wah
जवाब देंहटाएंसर आपके शब्द बहुत कुछ कहते हैंसर आपके शब्द बहुत कुछ कहते हैं
जवाब देंहटाएंVery deep & Nice lines, Sir
जवाब देंहटाएंBehtareen
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