मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

मोक्ष

 मोक्ष....

मेरे जलते दिये में

कुछ और बाती लगा दो

मैं खत्म हो जाना चाहता हूं

जल्द.......

तुम्हें और रोशनी दे के।

.............

बेकार दुनियां

बेकार है 

तुम्हारी दुनियां....

वही चांद...वही सतारे 

वही बादल...वही आसमान 

वही अंधेरे का डर

वही सूरज का सच

कुछ भी तो नया नहीं

बेकार है 

तुम्हारी दुनियां

.................

चांद को क्या मालूम

पूर्णिमा में भी 

चांद का दीदार न हुआ

रोशनी ने पूरी रात 

स्याह कर दी....

...................

बर्फ

पिघल रहा है

कोई हर रोज

नदी से मिलने को

बर्फ सा बैठा हूं 

मैं एक छोर.....


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