सोमवार, 18 जनवरी 2021

सच में

सच में

मेरी दीवार पर टंगे हैं

दर्जनों चेहरे

रोज एक पहन कर 

निकल जाता हूं

मुझे बुरा कहो

मेरा यकीन भी 

मत करो

किरदार में हूं अपने 

सच में....

रंग 

सच सफेद और झूठ काला क्यों है

ये जीवन इतना सादा क्यों है


काजल कारे...सिंदूर लाल

तो गोरे चेहरे पर आंसू सफेद क्यों हैं 


समुंदर नीला, सूरज पीला और आंचल इंद्रधनुष

फिर भी जीवन, बदरंग क्यों है


रंगों से ही है रौनक

तो होली, फिर मायूस क्यों है


गुस्से का रंग लाल, प्यार का गुलाबी

तो फिर चेहरा उसका पीला क्यों है

रंगों का राज इतना गहरा क्यों हैं


दर्द 

दिल से रिस कर, देह में पसर रहा है

ये दर्द है जो धीरे से, रगों में उतर रहा है


तन के चलने से उखड़ती है सांसे

दर्द ने झुकने का अदब सिखा दिया



5 टिप्‍पणियां:

  1. तीनों कविताएं एक से बढ़कर एक। दीवार पर टंगे चेहरे इंसानी जीवन की हकीक़त है ..एक शरीर में ना जाने कितने किरदारों को जी रहा है हर एक इंसान....

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  2. गौरव वीरेन्द्र19 जनवरी 2021 को 2:58 am बजे

    गहरी बात। बहुत खूब कविता।

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