गुरुवार, 16 जनवरी 2020

आमने-सामने.......................... ( सीन 1 )

मरे का दरवाजा खुलता है और दोनों युवकों को अर्धचेतन अवस्था में आधी रात को उनके बिस्तर पर लाकर छोड़ दिया जाता है दोनों औंधे मुंह बेसुध हो कर बिस्तर में धंस जाते हैं, रातभर गहरी नींद में बिना करवट बदले सोने के बाद सुबह मस्जिद पर लगे लाउड स्पीकर से आती आवाज से उसकी नींद में खलल पड़ती है वह सर उठाता है और फिर कान और शोर के बीच तकिये को ठूस करवट बदल कर फिर से बिस्तर में धंस जाता है। करवट बदलने के क्रम में उसकी नज़र कमरे के दूसरे बिस्तर पर पड़े युवक पर भी जाती है लेकिन वो धीरे-धीरे धुंधली होती हुई ओझल भी हो जाती है ...फिर अचानक उसकी आंखे एकदम से खुल जाती है वो बिस्तर से उठ कर बैठ जाता है...पीछे से आती लॉउडस्पीकर की आवाज बंद हो चुकी है...वो दूसरी बार सोने के करीब एक घंटे बाद जगा है। उसकी आंखें दूसरे बिस्तर पर पड़े उस युवक वह टिकी है जो उसकी तरफ पीठ कर के सोया हुआ है। कुछ पल ठहरने के बाद वो अचानक उठता है और सामने खिड़की पर लगे पर्दे को जोर से खींच कर दूसरी तरफ कर देता है।
पर्दे का बांध हटते ही रौशनी के सैलाब ने पूरे कमरे को अपनी आगोश में ले लिया। फर्श, दीवार, बिस्तर, टेबल सब के सब रौशनी में डूब गए । सैलाब ने कमरे को डुबोने से पहले बिस्तर पर परे उस युवक को भी झकझोड़ा, रौशनी के सैलाब को आंखों में घुसने से बचाने के लिए उसने अपनी आंखों को जोर से भींचा लेकिन रौशनी के तेज के आगे उसकी सारी कोशिशे बेकार रही चेहरे से सरक कर रौशनी आंखों में धुस कर पसर ही गई। फिर उसने अपनी हथेलियों से आंखों और सूरज के बीच पर्दा किया और आंखों की पुतलियों को नर्म रौशनी में पसारते हुए दोनों आंखें खोल दी। कमरे में किसी और के हाने का एहसास और पीठ पर किसी के नज़र की चुभन, उसे करवट बदलने पर मजबूर कर देती है...वो बिस्तर से अपने आप को खींच कर सीधे बैठ जाता है...। अब दोनों आमने सामने हैं...चेहरे से परिचित लेकिन नाम और पहचान से अपरिचित !
क्रमश : जारी है

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