मैं कौन हूं ? ...............................................................सीन 2
हू आर यू ?दोनों ने एक साथ एक दूसरे की आंखों में देखते हुए पूछा। लेकिन जवाब किसी ने भी नहीं दिया...ऐसा नहीं कि दोनों ने जवाब देने की कोशिश नहीं की लेकिन सिवाय एक दूसरे के चेहरे को पढ़ने के अलावा वो कुछ नहीं कर पाए। फिर दोनों ने एक साथ एक और सवाल किया ।
मैं कौन हूं ?हां...हम कौन हैं ?
इतने में दरवाज़े को नॉक करते हुए...होटल का बैरा टी-टेबल सरकाते हुए कमरे में दाखिल होता है...
गुड मॉर्निंग सर ! आज तो आप लोगों ने जगने में काफी देर कर दी ।
दोनों एक दूसरे को देख रहे थे और सोच रहे थे ये चाय किसने मंगवाई !
सर चाय में शक्कर कितनी लेंगे ?
एक क्यूब....मेरे में दो । दोनों चकित थे, दोनों को अपनी टेस्ट का तो पता था लेकिन दिमाग पर काफी जोर देने के बाद भी वो अपने बारे में कुछ याद नहीं कर पा रहे थे।
रॉबिन ! वेटर के सीने पर लगे नेम प्लेट को पढ़ते हुए दोनों ने एक साथ पूछा, रॉबिन !
तुम्हें पता है हम कौन हैं ?
यस सर ! फिर उसने अपनी उपर वाली जेब से एक जैसी दो स्लिप निकाली और दोनों के हाथ में थमाते हुए कमरे से बाहर चला गया। दोनों ने स्लिप पर बने बारकोड को नजरों से स्कैन किया....कोड स्कैन करते ही दोनों सामान्य हो गए दोनों के जहन में जो सवाल उथल-पुथल मचा रहे थे अब शांत हो गए थे । दोनों ने चाय खत्म की शॉवर लिया और तैयार हो कर निकल गए। एक ऐसे मिशन को पूरा करने के लिए जिसके लिए उन्हें खास तौर से तैयार किया गया था।.....
सी फेसिंग अपार्टमेंट के चौबीसवें फ्लोर की खिड़की से दोपहर में समुंदर को देखना उतना रोमांचक तो नहीं होता लेकिन जब समुंदर का मंथन दिमाग में चल रहा हो तो वहां समुंदर में उठने वाली लहरों के रोमांच से उतनी उर्जा नहीं मिलती जितनी उर्जा शांत और अनंत तक फैली उसकी बांहों को निहारते रहने से मिलती है। प्रो. कर्ण समुंदर की इसी उर्जा से आकर्षित खिड़की के दोनों किनारों पर हथेली टिका अनंत समुंदर को निहार रहे थे मानों दूसरे सिरे पर खड़ा कोई उन्हें बुला रहा हो और वो उसमे समा जाने या इसी किनारे ठहर जाने का फैसला नहीं कर पा रहे हों। इतने में दरवाजे के खुलने और कमरे में जबरन किसी के घुसने के अहसास ने प्रो. कर्ण को समुंदर के अनंत सिरे से उठा कर वर्तमान में पटक दिया। दिमाग में किसी सोच के आने से पहले वौ चांक कर पीछे मुड़े...लेनिक इससे पहले की वो कुछ बोलते सामने से आये सवाल ने उन्हें असहज कर दिया। सर हमलोग काफी देर से दरवाजा नॉक कर रहे थे, जब कोई जवाब नहीं आया तो हमलोगों ने दरवाजा खोल कर देखने का फैसला किया। इतना वक्त प्रो. कर्ण को सहज होने के लिए काफी था। उन्होंने मुस्कुराते हुए उन तीनों की तरफ देखा...
कोई बात नहीं...बैठ जाओ ।
ये दोनों AG और MK की पत्नियां हैं ना !
यह सर...
कुछ अर्जेंट !
यह सर...ये दोनों अपने-अपने पति के असाइनमेंट के बारे में जानना चाहती हैं। वो इस वक्त कहां हैं और किस असाइनमेंट पर है सब जानना चाहती है।
देखिए AG और MK ने आपको जो बताया है उससे अधिक मैं भी आपको नहीं बता सकता। हां उसे दोहरा जरूर सकता हूं कि आप दोनों के पतियों ने इस प्रोजेक्ट के लिए खुद हां कहा था और अपने आप को हमें समर्पित किया था। सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही हम लोगों ने आगे बढ़ने का फैसला किया है। ये सारी बातें आपको भी पता है फिर भी आप परेशान हो रही हैं अभी तो मुश्किल से 24 घंटे ही बीते हैं । आपलोग परेशान न हों वो दोनों पूरी तरह सुरक्षित हैं और कुछ ही देर में यहां पहुंचने वाले हैं आप उनसे मिल सकती हैं बात भी कर सकती हैं लेकिन जैसा कि आपको भी पता है कि उनकी मेमरी अब बाहर से नियंत्रित हो रही है। इसलिए वो शरीर से तो आपके आपके पति ही होंगे लेकिन दिमाग से नहीं।
We are waiting for the next post eagerly. Very interesting.
जवाब देंहटाएंयह कडी भी जिज्ञासा कायम रखने में सफल रही है।शेषांश का इंतजार है।
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