रविवार, 15 सितंबर 2024

मधुबन में आओ

शांत चित्त से 

प्रिय तुम मेरे

मधुबन में आओ


हाथ थाम कर 

जमुना किनारे

अपनी धुन सुनाओ


तुम्हें निहारती 

रहूं मैं बैठी

ऐसी मुरली बजाओ


मुरली की धुन 

सुन सब भूलूं

मूंदू आंख, मिल जाउं


श्याम सुधा में 

भींगूं रस भर

पियूं घूंट तर जाउं




शनिवार, 7 सितंबर 2024

दिल करता है

सूरत अपनी देख कर, सो जाने को

दिल करता है

नफरत इतनी कि आईने को चूर कर देने को

दिल करता है


सपनों की तरह टूट कर बिखर जाने को 

दिल करता है

अकेलापन इतना कि खुद से भाग जाने को

दिल करता है


तारों की बारात को लुटा देने को 

दिल करता है

गहराई इतनी कि डूब जाने को

दिल करता है


शोर कर के बच्चों को जगा देने को

दिल करता है

खामोशी ऐसी कि किस्मत पे रोने को 

दिल करता है


आंसूओं की बारिश से ज्वालामुखी बुझाने को 

दिल करता है

दहक इतनी की सब राख कर देने को

दिल करता है


शनिवार, 17 अगस्त 2024

चौखट

रोकता हूं बहुत खुद को

फिर भी खिंचा आता हूं

मंजिल तक आकर फिसल जाता हूं

मुंहाने पर गली के तेरी ठिठक जाता हूं

मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं


लिखता हूं मिटाता हूं

स्याही में घुला, तेरा नाम 

सबसे छिपाता हूं

खत लिखने से पहले ही फाड़ देता हूं

मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं


बंद हैं दरवाजे सारे

बंद हैं खिड़कियां

खुले रोशनदान की कुंडी

खटखटाने से डर जाता हूं

मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं

 

भीड़ है चारों तरफ

और सामने हो तुम 

बातें हैं बहुत सारी

कहने से रह जाता हूं

मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं

 

चेहरे पर हंसी चस्पा करूं कैसे 

आंसूओं की बाढ़ को बांधूं मैं कैसे 

रंग है जो रक्त का उसे बदलूं मैं कैसे 

सोच कर बेबसी यह सहम जाता हूं

मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं

 

जीतूं मैं किससे

किस को परास्त कर दूं

द्वंद है दसों दिशाओं में स्थिर मैं रहूं कैसे

रिश्तों के इस मकड़जाल में उलझ जाता हूं 

मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं


शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

लापता लेडीज : पता पूरा...संदेश अधूरा

स्त्री विमर्श को केंद्र में रख कर बनी इस फिल्म में कहानी जिस तरह से शुरू होती है उससे कहानी का अंदाजा तो आप लगा लेंगे लेकिन फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी आपका अंदाजा गलत साबित होता चला जाएगा। कहानी में कोई बॉलीवुड मसाला नहीं है लेकिन स्वाद चोखा है । फिल्म का संदेश स्त्री को आत्मनिर्भर बनाने को लेकर है। लेकिन इस मूल संदेश को स्थापित करने के क्रम में फिल्म में स्त्री के संघर्ष के जिन आयामों को दिखाया गया है वह पुरूष प्रधान समाज के विद्रूप चेहरे को भी बेपर्दा करता है। रेलवे प्लेटफॉर्म पर चाय की दुकान चलाने वाली दादी मां का संधर्षशील आत्मनिर्भर चरित्र, स्त्री के फाइनेंसिएल इंडीपेंडेंस के महत्व को बताता है। फिल्म के नायक स्त्रियों के जरिए स्त्रियों को अपना आसमान चुनने और अपने लिए जीने के अधिकार के संदेश को बखूबी प्रेषित किया गया है। फिल्म का अंत 70 के दशक में बनने वाली सुखांत फिल्मों के जैसी है लेकिन इसका संदेश आने वाले सौ वर्षो तक समाज को मिलता रहेगा। क्रिटिक की दृष्टि से यदि आप देखें तो फिल्म में आपको कुछ कमियां भी नजर आएंगी जो स्क्रिप्ट के कसाव और निर्देशन की खूबीयों में छुप सी गई है। मसलन फिल्म की शुरूआत जिस घुंघट की समस्या के कारण हुई है फिल्म के अंत तक उसका कोई समाधान या निदान नहीं दिखाया गया है। ऐसा प्रतीत होता है मानो घुंघट स्त्री की किस्मत है जिससे उसका छुटकारा संभव नहीं चाहे  वह कितनी भी सशक्त हो जाए समाज और परिवार का घुंघट चेहरे पर टिकाए रखना उसी की जिम्मेदारी है। एक और कमी जो इस फिल्म में मुझे दिखी वह है बाल विवाह को स्वीकार करने की। फिल्म में बाल विवाह को यदि प्रमोट नहीं किया गया है तो उसे अस्वीकार भी नहीं किया गया है जो कि किया जाना चाहिए था। 12वीं पास जया की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ होना फिल्म में दिखाया गया है। फूल की उम्र का स्पष्ट जिक्र तो नहीं है लेकिन जिस तरह एक सीन में फूल को जया के पैर छूते दिखाया गया है उससे लगता है कि निर्देशक कहानी में उसे जया से छोटी दिखाना चाहती है। मतलब ये कि नबालिग की शादी को फिल्म में स्वीकार कर लिया गया है। स्त्री विमर्श पर बनी इस फिल्म में यदि इन दोनों विषयों को भी एड्रेस किया जाता तो फिल्म और भी मजबूत दिख सकती।                                                                                           AI के जमाने में साइबर कैफे युग की पृष्ठभूमि पर फिल्म बनाने के लिए सोचना तभी संभव हो सकता है जब आपके पास विप्पलव गोस्वामी की एक मजबूत स्क्रिप्ट, विषय की गहरी समझ रखने वाले स्क्रीन प्ले और डायलॉग राइटर स्नेहा देसाइ और कहानी को जीने का जनून रखने वाले प्रोड्यूसर  आमिर खान और डायरेक्टर किरण राव हो । किरण राव जो प्रोड्यूसर के साथ-साथ फिल्म की डायरेक्टर भी हैं इस मामले में लकी रहीं कि उन्हें अपनी फिल्म लापता लेडीज को बनाने के लिए वो टीम देर से ही सही लेकिन मिल गई। और लापता लेडीज को सफलता का पता मिल गया। लेकिन मेरी तरफ से फिल्म को 10 में से 6 नंबर ही मिलेंगे।

रविवार, 21 जुलाई 2024

नज़रों की छुअन


बादल पूछते नहीं, हवाओं से पता अपना

पहुंच जाते हैं, जिस ठौर भी बरसना होता है


हालात बदल देते हैं सीरत सूरत की

नजरें बेपरवाह भी इशारा समझ लेती है


जुबां लाख सिल ले वादों से कोई 

नज़रों की छुअन सब बोल देती है


जिन्हें हुनर है ज़ज्बातों को समझने का

किश्ती तुफान में भी वह कंधा ढूंढ़ लेती है


मतलब, हाथ थामने का हो पता जिसे

दिल दे दीजिए उसे, तजुर्बा कहता है


पिघलते हैं जज्बात, आंसुओं की भटठी में जब

तब जाकर कोई कविता आकार लेती है...


बुधवार, 17 जुलाई 2024

मैं हूं


बिना देखे भी

तुम्हें

देखता हूं मैं

 

बिना सुने भी

तुम्हें

सुनता हूं मैं

 

बिना छुए भी

तुम्हें

महसूसता हूं मैं

 

तुम्हारा

न होना भी

होना है

मेरे लिए

 

तुम हो

यहीं हो

 

मेरे खालीपन में

तुम हो

 

मेरे सूनेपन में

तुम हो

 

मेरे होने में

तुम हो

 

तुम्हारे

नहीं होने में

मैं हूं...मैं हूं...मैं हूं

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

माधव तुम अपराधी हो...

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दिनकर के सवाल 


माधव तुम अपराधी हो

राधेय के तुम घाती हो


अर्जुन की खातिर माधव तुमने

राधेय की बलि चढ़ाई है


पार्थ मोह में अंधे हो, तुमने

दिनकर की ज्वाला भड़काई है


क्या दोष था, मेरे कर्ण का जो

न दिया तुमने उसे अवसर समान 


साजिश केवल कर्ण से क्यों ?

दिनकर का क्यों कुछ मोल नहीं ?


मेरी शपथ उठाते हो

मेरे पुत्र पर बाण चलाते हो !


माना मेरा कोई मोल नहीं

पर अनमोल थे कुंती पुत्र सभी


वह भी तो कुंती पुत्र ही था 

फिर भी तुमको प्रिय न था !


माना अर्जुन तुम्हें प्यारा था

पर कर्ण ने क्या बिगाड़ा था


बिना दोष हरे राधेय के प्राण 

दिया अजुर्न को भी अपयश समान


था अर्जुन का नहीं दोष कोई 

वह लड़ कर जीतना चाहता था


हे त्रिकालदर्शी माधव तुमको,पर

हार, पार्थ का स्वीकार न था 


था संदेह तुम्हें, अर्जुन की वीरता पर

रच दिया इसलिए प्रपंच प्रबल


अगर नीति पर तुम चले होते 

न प्राण राधेय के हरे होते


समर से पहले राधेय के

न कवच कुंडल छीने होते 


छीना पहले कवच-बाण,फिर

छोड़ दिया रण में, अनाथ समान


इतने में भी, जी नहीं भरा 

तो दिया शकट धरती में धंसा


निहत्थे नंगे सीने पर फिर 

बेध दिए अर्जुन के बाण


धर्म-अधर्म, नीति-अनीति,

ये शब्द हैं सब कूटनीति के


सच तो केवल वह होता है 

जो वीर रक्त से लिखते हैं


नीति-अनीति न समझाओ मुझे

न धर्म-अधर्म की बात करो मुझसे 


माधव तुम तो बतलाओ बस 

कर्ण की हत्या में धर्म था क्या ?


मित्रता के रिश्ते पर माधव

क्यों रिश्ता रक्त का भारी है ?


मित्रता पाप यदि है तो, क्यों

पार्थ से मोह कोई दोष नहीं !


जहां ज्ञान गीता का दिया तुमने

उसी धरा पर पाप किया तुमने


यदि मृत्यु, दंड है मित्रता का 

तो मोह का क्यों, कोई दंड नहीं !


यह कैसा विधान लिखा तुमने

जो मित्रता को पाप बताता है


मोह पाश में बंधे मायावी को

निश्छल, निष्कलंक दर्शाता है


सोचो, क्या होता उस क्षण को

जो धरा पर मैं उतर आता


पिता के अश्रु ज्वाला से

सब भस्म वहीं पर हो जाता


न बचते पांडव और कौरव

माधव को भी राख मैं कर देता 


न जानते लोग महाभारत को

न गीता का ज्ञान समझ पाते


ब्रह्मा का लिखा भी मिट जाता

कुरूक्षेत्र में प्रलय ही हो जाता


राधेय के रक्त से सन कर जब

मिट्टी, कुरूक्षेत्र की धन्य हुई


उससे पहले, रणभूमि में तुमने

धर्म की चिता जलाई है


जब तुमने ठान लिया ही था

तो प्राण कर्ण के जाना ही था


फिर, अर्जुन को विजयी बनाने को

साजिश को धर्म ठहराने को


रच दी लीला लीलने की

और रख दी नींव नये युग की 


भाई ने भाई को मार दिया

न बचा रिश्ते में रक्त जरा


माधव तुमको, ये न करना था

द्वापर में कलयुग न जीना था


पिता के सामने बेबस बना

पुत्र का वध न करना था


कर देते ओट बादल का जरा तो

छा जाता अंधेरा, क्षण भर को वहां


फिर कर लेते मनमानी तुम

मैं दोष अंधेरे पर मढ़ देता


न लगती कालिख कलंक की तुम्हें

अंधेरे में तुम भी छुप जाते


लिखा जाता इतिहास, जब उजाले में 

तो नाम तुम्हारा मिट जाता


लेकिन इतिहास बदल न सका

और नाम तुम्हारा अमिट रहा


माधव तुम अपराधी हो...

राधेय के तुम घाती हो

         ..............

माधव का जवाब


न कर्ण से घात किया मैंने

न अर्जुन ने प्राण हरे उसके


था प्रबल प्रतापी राधेय मेरा

सूर्यवंशी  तेज था रग-रग में 


पर लिखा था जो, वो होना था

सूर्यपुत्र के तेज को, ढलना था


अधर्म के साथ खड़े होने का

भुगतान प्राणों से करना था


धरा पर अधर्म के साथ है जो

वह बोझ है धरती पर भारी 


अभयदान राधेय को यदि दे देता

फिर धरती को कैसे माता कहता !


धरती से पाप मिटाने को 

हे दिनकर मैं तो हूं विवश 


फिर भी सद्मार्ग दिखाने को 

राधेय संग बात बढ़ाई थी


हाथ पकड़ कर राधेय के

अपने घर की राह दिखाई थी 


धर दिया था सिर पर पांडव मुकुट 

पर, मोल मुकुट का वह समझ न सका


दुर्योधन के प्रेम में अंधा हो 

पांडव मुकुट को बोझ कहा


न रख सका मान वह ममता का 

दिया कुंती को भी वचन, श्राप समान 


भाई के रक्त के प्यासों को 

अपना रक्त बेमोल दिया


क्यों दानवीर ने दुर्योधन से 

राज अंग का दान लिया !


पांच ग्राम पांडवों को जो दे न सके

क्यों दे दिया उसने प्रदेश दान !


दान भाव में छुपे कुटिल भेद को 

क्यों समझ न सके दानवीर महान !


शकुनि के बिछाये चौसर में

फंस गए कर्ण, अभिमन्यु समान 


न समझ सके शकुनि के छल को

दुर्योधन की चाल न पहचानी


वह कहता था राधेय को मित्र

मगर, मित्र न उसे समझता था 


राधेय के पराक्रमी भुजा को उसने

मित्रता की मुद्रा से खरीदा था 


हे दिनकर क्या यह भी दोष मेरा

जो मित्र पाश में बंधा था वो


मैंने तो सभी पांडवों के 

जीने की राह बनाई थी


पर कुंती को दिए वचन से 

राधेय ने दुविधा  बढ़ाई थी


सभी पांडव पुत्र थे प्रिय मुझे 

पर करना था कठिन चयन मुझे 


हे दिनकर ! तुम ही बतालाओ

धर्म स्थापना के इस महाभारत में


मैं किसके साथ खड़ा होऊंऔर

किससे विलग मैं हो जाऊं 


धर्म है क्या और अधर्म क्या ?

था राधेय को सब ज्ञात मगर


धर्म पर प्रत्यंचा ताने वह

अधर्म के साथ अटल रहा


हे दिनकर आप तो ज्ञाता हो

हर प्राणी के प्राण दाता हो


युग-युग से प्राणियों के सुख-दुख

के प्रत्यक्ष प्रामाणिक दृष्टा हो


तुम पिता नहीं केवल राधेय के

हर जीव में जीवन है तुमसे


शुरु  होती हर कहानी तुमसे

तुममे ही अंत हो जाता है


फिर भी बतलाता हूं तुझको, क्यों

किया था न बादल का ओट जरा


यदि ओट बादल का मैं कर देता 

तो अंधेरे में अधर्म विजयी होता


दिवा को रात्रि करने का 

दोष मेघराज के सिर होता


धर्म-अधर्म के महाभारत में

अन्याय धर्म के साथ होता


राधेय के सीने पर दिनकर 

फिर भी अर्जुन के बाण चलते 


दिनकर के नहीं देखने भर से

सृष्टि का लिखा नहीं मिट जाता


बादल के बीच में आने से

महाभारत तो नहीं रूक जाता


अर्जुन के हाथों मुक्त हो कर 

राधेय न दिनकर को प्राप्त होते  


चलती सांसे अधर्म के साथ

पर मुक्ति उसे न मिल पाती


तुम बेबस ताकते रहते बस

मुक्ति की राह न सुझा पाते


कुछ परे नहीं है दृष्टि से तेरे 

जान के भी क्यों अनजान हो तुम


फिर भी माधव यदि दोषी है

तो चाहे जो वह सजा दे दो


अगर यही लिखा है सृष्टि ने, 

तो यह दोष भी अपने सिर लेंगे


हे दिनकर मैं अपराधी हूं

तेरे राधेय का मैं घाती हूं..........................

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