नब्ज थाम कर दर्द की दवा लिख दी
हाथ दिल पर रखता तो इलाज हो जाता
मेरा तबीब मेरा हिसाब कर देता है
नुस्खा नहीं बताता पर दिल की बात कह देता है
दिल का मर्ज दवा से दुरूस्त नहीं होता
संजीवनी वो नज़रों से बयां कर देता है
हर मर्ज की अलग दवा देता है दवाखाना
ये मयखाना है जो मर्ज में कोई फर्क नहीं करता
उम्मीद...चाहत...भूख की जमींदारी है आदमी
औकात सपनों की बंजर ज़मीन हो गई
दावा...दुआ...टोना - टोटका आजमा लिया हूं सब
डायन नज़र तेरी, क्यों मुझेसे हटती नहीं है
क्यों हाल मेरा बार - बार पूछते हो तुम
क्या पता नहीं तुम्हें, मुझे हुआ क्या है
उम्दा
जवाब देंहटाएंआपको आजतक की साहित्यिक मंच पर भी होना चाहिए।
हटाएंBahut khoob 👌👌
जवाब देंहटाएंVery nice 👌
जवाब देंहटाएंrachna dili he..bahut sundar...Kiran Prabha...
जवाब देंहटाएंयह रचना आपकी पारंपरिक शैली वाली नहीं है पर आपने इसे भी बखूबी पेश किया है। शायद यह किसी भी रचनाकार की सबको बड़ी ताकत है कि वह सीमाओं में नहीं बंधता
जवाब देंहटाएं