शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

दिल का मर्ज

नब्ज थाम कर दर्द की दवा लिख दी 

हाथ दिल पर रखता तो इलाज हो जाता


मेरा तबीब मेरा हिसाब कर देता है

नुस्खा नहीं बताता पर दिल की बात कह देता है


दिल का मर्ज दवा से दुरूस्त नहीं होता

संजीवनी  वो नज़रों से बयां कर देता है


हर मर्ज की अलग दवा देता है दवाखाना 

ये मयखाना है जो मर्ज में कोई फर्क नहीं करता 


उम्मीद...चाहत...भूख की जमींदारी है आदमी 

औकात सपनों की बंजर ज़मीन हो गई 


दावा...दुआ...टोना - टोटका आजमा लिया हूं सब

डायन नज़र तेरी, क्यों मुझेसे हटती नहीं है


क्यों हाल मेरा बार - बार पूछते हो तुम

क्या पता नहीं तुम्हें, मुझे हुआ क्या है



6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आपको आजतक की साहित्यिक मंच पर भी होना चाहिए।

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  2. यह रचना आपकी पारंपरिक शैली वाली नहीं है पर आपने इसे भी बखूबी पेश किया है। शायद यह किसी भी रचनाकार की सबको बड़ी ताकत है कि वह सीमाओं में नहीं बंधता

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