रविवार, 3 नवंबर 2024

डूबने दे

सतह पर सबकुछ

धुंधला है

तह पर पहले

उतरने दे

अभी डूब रहा हूं

डूबने दे


आंखें मूंद कर

देखूं तुझको

वह अंतर्यात्रा करने दे

अभी डूब रहा हूं

डूबने दे


थाह अथाह की लेने दे

राम प्यास को बुझने दे

बूंद-बूंद में राम बसे हैं

रगो में उसे उतरने दे

अभी डूब रहा हूं

डूबने दे


राम रंग है

चढ़ा बदन पर

ह्रदय में उसे उतरने दे

रग में राम

बहते हैं कैसे

इसको जरा महसूसने दे

अभी डूब रहा हूं

डूबने दे


डूब गया हूं आकंठ राम में

अब मुझको नहीं उबरना है

समझ गया हूं माया तेरी

डूबना ही जग में उबरना है

डूबते रहना है बस मुझको

तह तक नहीं पहुंचना है....

डूब रहा हूं प्रभू मैं तुझमे

मुझको बस

अब डूबने दे...



16 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुन्दर। राम के प्रति अगाध श्रद्धा इन पंक्तियों में दर्शाया गया है। प्रभु के प्रेम में डूबते ही रहना है, तह तक नहीं पहुंचना है.....वाह

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  2. राम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है!
    कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है!!

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  3. बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति

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  4. "डूबना ही जग में उबरना है" .... वाह ।
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. आस्था और भक्ति से सराबोर सुंदर प्रस्तुति

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  6. तह तक नही पहुॅचना है ; कविता की यह पंक्ति प्रभु के प्रति निःसंकोच विश्वास भाव को स्पष्ट करती है , प्रभु के प्रति आपकी अटूट श्रद्धा ,कविता में चार चांद लगा देती है । अति मनभावन ..

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  7. सर आपके शब्दों में एक अद्भुत ताजगी है, जो मन को छू जाती है। "डूबने दे" का अनुरोध आत्मा की गहराइयों में उतरने का प्रतीक है।
    प्रभु श्रीराम की भक्ति और समर्पण की भावना को इन पंक्तियों में समझा जा सकता हैं। सर आपकी भाषा में जो लय है, आपके प्रत्येक शब्द से पढ़ने वाले को बांध लेते है। सर, आपकी ये पंक्तियां सात्विक और सकारात्मकता का स्रोत हैं ।


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