सतह पर सबकुछ
धुंधला है
तह पर पहले
उतरने दे
अभी डूब रहा हूं
डूबने दे
आंखें मूंद कर
देखूं तुझको
वह अंतर्यात्रा करने दे
अभी डूब रहा हूं
डूबने दे
थाह अथाह की लेने दे
राम प्यास को बुझने दे
बूंद-बूंद में राम बसे
हैं
रगो में उसे उतरने दे
अभी डूब रहा हूं
डूबने दे
राम रंग है
चढ़ा बदन पर
ह्रदय में उसे उतरने दे
रग में राम
बहते हैं कैसे
इसको जरा महसूसने दे
अभी डूब रहा हूं
डूबने दे
डूब गया हूं आकंठ राम में
अब मुझको नहीं उबरना है
समझ गया हूं माया तेरी
डूबना ही जग में उबरना है
डूबते रहना है बस मुझको
तह तक नहीं पहुंचना
है....
डूब रहा हूं प्रभू मैं
तुझमे
मुझको बस
अब डूबने दे...
Bahut khoob👌👌
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर। राम के प्रति अगाध श्रद्धा इन पंक्तियों में दर्शाया गया है। प्रभु के प्रेम में डूबते ही रहना है, तह तक नहीं पहुंचना है.....वाह
जवाब देंहटाएंराम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है!
जवाब देंहटाएंकोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है!!
🙏
हटाएं🙏🙏
हटाएंबहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं"डूबना ही जग में उबरना है" .... वाह ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
🙏
हटाएंआस्था और भक्ति से सराबोर सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंSamajh gya hun Maya teri
जवाब देंहटाएंDubna hi jag me ubarna he..wah..(Kiran Prabha)
तह तक नही पहुॅचना है ; कविता की यह पंक्ति प्रभु के प्रति निःसंकोच विश्वास भाव को स्पष्ट करती है , प्रभु के प्रति आपकी अटूट श्रद्धा ,कविता में चार चांद लगा देती है । अति मनभावन ..
जवाब देंहटाएंसर आपके शब्दों में एक अद्भुत ताजगी है, जो मन को छू जाती है। "डूबने दे" का अनुरोध आत्मा की गहराइयों में उतरने का प्रतीक है।
जवाब देंहटाएंप्रभु श्रीराम की भक्ति और समर्पण की भावना को इन पंक्तियों में समझा जा सकता हैं। सर आपकी भाषा में जो लय है, आपके प्रत्येक शब्द से पढ़ने वाले को बांध लेते है। सर, आपकी ये पंक्तियां सात्विक और सकारात्मकता का स्रोत हैं ।
जवाब नहीं 👏❤️
जवाब देंहटाएंsamay nikalne ke lia dhanywad
हटाएंBahut khoob 👌👌
जवाब देंहटाएं🙏
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