रोकता हूं बहुत खुद को
फिर भी खिंचा आता हूं
मंजिल तक आकर फिसल जाता हूं
मुंहाने पर गली के तेरी ठिठक जाता हूं
मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं
लिखता हूं मिटाता हूं
स्याही में घुला, तेरा नाम
सबसे छिपाता हूं
खत लिखने से पहले ही फाड़ देता हूं
मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं
बंद हैं दरवाजे सारे
बंद हैं खिड़कियां
खुले रोशनदान की कुंडी
खटखटाने से डर जाता हूं
मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं
भीड़ है चारों तरफ
और सामने हो तुम
बातें हैं बहुत सारी
कहने से रह जाता हूं
मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं
चेहरे पर हंसी चस्पा करूं कैसे
आंसूओं की बाढ़ को बांधूं मैं कैसे
रंग है जो रक्त का उसे बदलूं मैं कैसे
सोच कर बेबसी यह सहम जाता हूं
मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं
जीतूं मैं किससे
किस को परास्त कर दूं
द्वंद है दसों दिशाओं में स्थिर मैं रहूं कैसे
रिश्तों के इस मकड़जाल में उलझ जाता हूं
मैं रोज तेरी चौखट से लौट आता हूं
As always, a fantastic piece of writing ✨✨
जवाब देंहटाएंThank you so much for your kind words and appreciation!
हटाएंThe emotional impact of your words always resonates with the readers. Beautiful piece of writing 👌👌
जवाब देंहटाएंThanks...knowing that my words resonated with readers is truly fulfilling. I am grateful for your support and hope my future work continues to connect with readers in meaningful way.
हटाएंअंदर की दुनियां और बाहर की दुनियां अक्सर समानांतर रेखाओं पर चला करती है। अंतर्द्वंद्व के भावों को दर्शाती प्रभावशाली कविता👌👌
जवाब देंहटाएंYour feedback is a gift that fuels my creative journey, Every writer dreams of their work touching others and your response tells me that I am on right path. Thanks once again for taking the time to read my poem and sharing your thoughts.
जवाब देंहटाएंFabulous writing. It makes us experience a roller coaster of emotions and leaves us wanting for more. Keep writing, mausaji!
जवाब देंहटाएंSure...thank you Prachi
जवाब देंहटाएंशानदार मेरे दोस्त।।
जवाब देंहटाएंThank you pankaj bro....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा।
जवाब देंहटाएंVery good 👍
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
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