रविवार, 4 फ़रवरी 2024

इश्क़ रूमली

मैं स्वाहा


मंत्र हो तुम 

वेदों के

गीता का 

हो श्लोक

अग्नि हो तुम

यज्ञ के मेरे

और तुम्हारी

मैं स्वाहा....

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इश्क़ रूमाली


रात भर 

हथेलियों पर

ओस समटे हैं मैंने

इसमे खुशबू है

'शबनम' की

सूरज की लाली है

रंग इसका 

गहरा गुलाबी है

ये इश्क़ 

रूमाली है


ये इश्क़ है मेरा एकतरफा

या तुमने कोई मंतर मारा है


बंध कर जुल्फों में कोई 

क्या इतना भी खुश रह पाता है


जादू-मंतर...टोना-टोटका 

ये बातें सब खयाली हैं


है इश्क़ मेरा नहीं गुलाबी केवल

ये इश्क़ मेरा रूमाली है

3 टिप्‍पणियां:

  1. मुकेश जी, वैसे तो आपकी हर कविता बेहतरीन और दिल को छूने वाली होती है लेकिन इसकी तो बात ही अलग है, मेरे लिए संग्रहणीय है👌👌

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  2. Apne liye kavita ke injaar me 😀kaun likh payega itna behtareen,ham bhagyashali hain 🙏

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