काबुलीवाले का अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में तालिबान के प्रति लोगों में डर और घृणा दोनों है। पुरूषों में तालिबान के प्रति जहां डर है वहीं महिलाओं में घृणा। डर और घृणा में सबसे बड़ा फर्क ये होता है डर में समझौते की गुंजाइश बची होती है लेकिन घृणा में यह बिल्कुल नहीं होती । डरने वाला डराने वाले से बिना शर्त समझौता कर लेता है लेकिन घृणा करने वाला व्यक्ति चाहे खुद समाप्त हो जाए लेकिन जिससे घृणा करता है उससे समझौता नहीं करता। तालिबान के प्रति वहां की महिलाओं की घृणा भी इसी तरह की है, एकतरफा और बेइंतहां। अफगानिस्तान में तालिबान से यदि कोई मुकाबला कर सकता है तो वो वहां की महिलाएं ही हैं। अपनी घृणा को अपना हथियार बना कर तालिबान को समाप्त करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। अबतक अफगानिस्तान की महिलाओं ने तालिबान के एकतरफा अत्याचार को बर्दाश्त ही किया है। तालिबान के लड़ाके जो अपने आपको बंदूक के दम पर मर्द कहते हैं दरअसल नामर्द और कमजोर हैं और वैसे गैर तालिबानी पुरूष जिनके पास हथियार नहीं हैं और वो तालिबान के डर से भागे फिर रहे हैं वो ना तो लड़ाके हैं और ना ही मर्द। क्योंकि यदि वो मर्द होते तो तालिबान के काबुल में आ जाने भर से अपने परिवार अपनी बेटी अपनी बहन, पत्नी और मां को छोड़ कर अकेले नहीं भाग रहे होते। तालिबान के डर से एयरपोर्ट की तरफ बेतहाशा भागते अफगानियों की तस्वीर में कोई भी औरत शायद ही आपको दिखे। भागने वाला हर नामर्द अपने-अपने घरों में या तो बीबी को, या बेटी को या बहन को या मां को तालिबानियों के हवाले कर के भागा है। अब तक अफगानिस्तान के नामर्दो को महिलाओं की तरफ से कोई प्रतिकार नहीं मिला है इसलिए वो अपने आप को मर्द कहते रहे हैं। तालिबानियों ने जैसा चाहा महिलाएं भी उनके सामने वैसे ही पेश होती रही या पेश होने को मजबूर होती रहीं। लेकिन आज की तस्वीर पिछले हालात की तस्वीरों से अलग है अब अफगान की महिलाओं के सामने हथियार उठाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। तालिबानी जब सरकार और देश शरिया कानून से चलाएंगे तो महिलाओं को कितने दिनों तक बराबरी में बर्दाश्त करेंगे ? आज विश्व समुदाय का साथ पाने के लिए भले ही तालिबान अपनी निरंकुश और महिलाओं के प्रति अपनी क्रूर छवि को बदलने की कोशिश कर रहा हो, अपने आप को महिलाओं का हिमायती बता रहा हो लेकिन वहां की महिलाएं जानती है कि उनकी असल मंशा क्या है। महिलाएं जानती हैं कि वो तालिबानियों के लिए भोग विलास की वस्तु से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं।
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद जो एक तस्वीर सभी अखबारों और टीवी न्यूज में जो दिखी वो अफरा-तफरी की थी, डर की थी, लोग तालिबान के डर से किसी भी तरह अफगानिस्तान की सीमा से बाहर निकल जाना चाह रहे थे। पहली नजर में बेतहाशा भागते इन अफगानियों पर दया और तरस आ रही रही थी लेकिन जब थोड़ी देर आप इन तस्वीरों को लगातार और गौर से देखेंगे तो आपको इन्हीं अफगानियों से घृणा होने लगेगी। काबुल की सड़कों पर बेतहासा भागते इन अफगानियों की तस्वीरों को आप जब गौर से देखेंगे तो इनमे आपको सिर्फ और सिर्फ पुरूष ही दिखेंगे। कहीं-कहीं इक्का-दुक्का तस्वीरों में शायद आपको महिलाएं भी अपने परिवार के साथ भागते दिख जाएं। अकेले अपने परिवार को पीछे छोड़ या तालिबानियों के हवाले कर हालात से भागते ये पुरूष कायर हैं...डरपोक हैं...नामर्द हैं। ये मौत से कम कुछ भी डिसर्व नहीं करते इन्हें मर ही जाना चाहिए या मार ही देना चाहिए। अपनी बहन, बेटी, पत्नी, और मां को तालिबानियों के भरोसे छोड़ भागने की सोचने वाले को भी मौत ही मिलनी चाहिए।
स्त्री चाहे कहीं की हो उनमे मां दुर्गा हैं...वह मां काली हैं और वही मां चंडी भी है....अफगान की महिलाओं को अपने इस रूप को पहचानना होगा। हालात के सामने हथियार डाल कर किसी नायक के अवतरित होने का इंतजार करने से बेहतर है कि वो अपने अंदर के नायक को बाहर लाए हथियार उठाएं और आताताइयों का संहार कर नये अफगानिस्तान का निर्माण करे। जहां से फिर यदि कोई काबूलीवाला हिंदुस्थान आए तो उसकी आंखों में वापस जाकर अपनी बेटी से मिलने का सपना तो हो लेकिन वो डर बिल्कुल ना हो कि कहीं मेरी बेटी को कसी तालिबानी गिद्ध ने शिकार ना बना लिया हो।
True depiction of picture..
जवाब देंहटाएंबेहद सपाट तरीके से कही गयी सच्चाई, कड़वी परंतु यथार्थ।
जवाब देंहटाएंइन Muslim लोगों पर बिल्कुल भरोसा मत करो, यह तालिबान का सारा खेल पहले से रचाया हुआ है,
जवाब देंहटाएंये तालिबान जो कर रहा है,ये सिर्फ अफगानिस्तान के मुसलमानों को दूसरे देशों में बसाने का नाटक भर है,
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लेकिन आप एक बात पर ध्यान देना 57 मुस्लिम देशों में से 56 देशों से कोई भी मुस्लिम देश इनको शरण नहीं दे रहा, ये लोग बस यही चाहेंगे कि फ्रांस इटली जर्मनी या अमेरिका इंग्लैंड ऑस्ट्रेलिया में शरण मिल जाए, जबकि इन लोगों को शरण सबसे पहले Muslim देशों ने देनी चाहिए थी, लेकिन वो सब लोग चुप हैं, ये चुप्पी भी साजिश का हिस्सा है,
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सारे मुसलमानों को समझा दिया जाता है की हर 5 से 10 साल में कोई आतंकवादी संगठन को मजबूत किया जाएगा हथियार दिए जाएंगे फिर मारकाट होगी और वहां से लाखों मुसलमानों को दूसरे देशों में भेजा जाएगा ताकि उन देशों में मुसलमानों की संख्या बढ़ाई जा सके,
निर्मम तरीके से कुछ लोगों को इसलिए मारा जाता है ताकि दुनिया ऐसे वीडियो देखकर उन पर दया आए, और कुछ देश आगे आकर उनको शरण देने के लिए तैयार हो जाएं, जैसे कि फ्रांस ने दिया था, लेकिन बाद में फ्रांस में ही इन लोगों ने क्या किया वो आपको पता है,
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हमारे सनातन राष्ट्र भारत में तो पहले से ही इन जेहादियों ने गदर मचाया हुआ है । दिल्ली,पश्चिम बंगाल, केरल, हरियाणा, उतराखंड,हिमाचल प्रदेश, पंजाब का मलेरकोटला आदि ,यूपी, बिहार,दक्षिण भारत,कश्मीर, लद्दाख कहाँ नहीं है ये राक्षस फिर रोहिंग्या मुस्लिम व बाँगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए सो अलग और इनके साले भाजपा विरोधी राजनैतिक दलों के नेता सो अलग । बिमारी कोविड की तरह फैल चुकी है ।
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