शनिवार, 24 जुलाई 2021

यात्रा


यात्रा

1

बादलों से गिरना

पर्वतों पर बिखरना

पेड़ों से लिपट कर

पत्तियों से खेलना

साथ में उसके 

दूर तक निकलना

पहुंच कर फिर

खेतों में 

हलधर से लड़ना

बह कर फिर नदियों में

सागर से मिलना

सागर से सूरज का 

मुंह तकते रहना

बन के बादल

फिर आसमां पर 

जा कर बस जाना

दीवानगी

ये धरती की 

पुकार नहीं

है बूंदों की 

दीवानगी

भला लौटता है कोई क्या 

आसमां हो जाने के बाद

3

साथी

बर्फ के शोले 

आग का दरिया

काठ की नाव 

और माटी की पतवार

बादल मेरे साथी

हैं बरसने को तैयार ।

4

असंभव नहीं...संभव

डूबता है पानी भी

तह में पहुंचने के बाद

सूखती है नदियां भी

बादलों के रूठने के बाद

तैरते हैं पत्थर भी

राम से मिलने के बाद

कुछ भी नहीं है मुश्किल

मन में ठान लेने के बाद


5 टिप्‍पणियां:

  1. अत्यधिक प्रभावशाली पक्तियों द्वारा प्रस्तुति ।

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  2. Fantastic.. Seems like drenched in ur couplets.. More awaited!!

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  3. सुंदर कविताएं.... बारिश का दृश्य आंखों के सामने जीवंत हो उठा

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  4. प्रकृति के सौंदर्य का सुन्दर चित्रण।

    ये धरती की 

    पुकार नहीं

    है बूंदों की 

    दीवानगी

    भला लौटता है कोई क्या 

    आसमां हो जाने के बाद।
    उपरोक्त पंक्तियां विशेष प्रशंसा की हकदार हैं।

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  5. जब क्षमता हमें अहंकारी बना देती है, कविता हमारी सीमाओं से हमें आगाह कराती है! जब क्षमता हमारे सरोकार का क्षेत्र सँकरा कर देती है, कविता हमारे अस्तित्व के प्राचुर्य एवम् विविधता की याद दिलाती है! जब क्षमता प्रदूषित करती है, तब कविता परिमार्जित करती है,क्योंकि कला उन मानवीय सच्चाइयों को स्थापित करती है, जिन्हें हमारे विवेक की कसौटी होना चाहिये!
    मुकेश की अनुभूतिजन्य ललित गद्य में पद्य का माधुर्य और भाव की सहज अभिव्यक्ति बरबस ही नवागंतुक रचनाधर्मी को विशिष्ट बनाती है!अशेष संभावनाओं के सर्जक को शुभकामनाएं!

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