शनिवार, 13 मार्च 2021

पत्थर


पत्थर

अब 

बेजुबान हैं

यकीन मानो

ये बोलते थे

कभी

बातें करते थे

दूब से

लड़ा करते थे

धूप से

लिपट जाया करते थे

हवाओं से

डूब जाया करते थे

बारिश में

भींग जाया करते थे

शबनम से

बस...

एक फूल के 

मुरझाने से

हो गए हैं 

बेजुबान

ये पत्थर


7 टिप्‍पणियां:

  1. उम्मीद है फिजाएं बदलेंगी, हमारी दुआओं का असर होगा
    फिर से कलियां आएंगी, फिर ये पत्थर मुस्कुराएंगे।

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  3. विश्वास वह सहज उपहार है जो हर इन्सान दूसरे इन्सान को दे सकता है। जब वह फूल मुरझा जाता है तब अहसासों का बयार एक का स्पर्श लेकर दूसरे तक नहीं पहुँचता।स॔वेदनाओं के शबनम सृजन से पहले ही तिरोहित हो जाते हैं। इंसानों की प्रवृति यूॅ ही पाषाणी होती है-साहचर्य में सहयोग नहीं संघर्ष होता है।बेमानी टकराव की ओर इशारा करती बेहतरीन प्रस्तुति।

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  4. ऐसा बेशकीमती फूल जिसके होने से निष्प्राण पत्थर भी जीवंत हो उठे... कोशिश होनी चाहिए ऐसे फूल को मुरझाने से बचाने की....
    सुंदर रचना।

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  5. आपके सहज शब्दो की गहराई को समझना हम जैसों के लिए आसान नहीं है। पर आपकी लेखनी का शीर्षक है क्रमशः, तो मुझे ऐसा लगता है कि जो आज है वो कल बदल जायेगा,फूलों के मुरझाने और खिलने का चक्र चलता रहेगा।

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