रविवार, 7 मार्च 2021

मन

 निविड़ वन के बीच

एक पिंजरा है मन

बाहर वीरान अनंत

अंदर कोलाहल आकंठ 

बाहर शजरों का संघर्ष

अंदर दावानल प्रचंड

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन अभिव्यक्ति। अनेकानेक मानव- विंब अलग-अलग रिश्तों के रूप में मन में मौजूद होते हैं। उस भीङ में कई समान रूप से महत्वपूर्ण और अनिवार्य भी होते हैं। आप मन से मन की दूरी अकेले तय करते हैं। उस राह पर किसी का हाथ थाम कर नहीं चला जा सकता । सबके साथ समीकरण अलग तो समाधान भी अलग।

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  2. एक मन में ठसाठस और शजरों की अवधि क्या है सर

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  3. अंदर का संघर्ष बड़ा या बाहर का दावानल... उत्तर ढूंढना मुश्किल है या शायद नामुमकिन।
    अन्तर्मन के कोलाहल की ऐसी सटीक अभिव्यक्ति, वह भी बस चंद बेहद सटीक ‌शब्दों के माध्यम से.....आपकी लेखनी सचमुच काबिले तारीफ़ है। अगली रचना का इंतजार है।










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