अंधेरे की चमक...
जेठ की दोपहरी में वो दोनों कदम ताल करते हुए पहाड़ी से तेजी से नीचे उतरते चले जा रहे थे। शाम ढलने से पहले वो अपनी मंजिल तक पहुंच जाना चाहते थे ...उनके कदमों की तेजी ये बता रही थी कि कुछ है जो वो गांव वालों को जल्द से जल्द बता देना चाहते हैं। उनकी नजर के सामने गांव के पंचायत भवन का बाहरी चबूतरा और भवन की छत पर लगे डिश का एंटिना दूर से ही चमक रहा था। एंटिना से टकरा कर रौशनी देखने वालों की आंखों को चैंधिया रही थी। प्रचंड गर्मी में नंगी आंखों से जहां तक देखा जा सकता था वहां तक सिर्फ सन्नाटा ही पसरा था। पत्थर से निकल रहे ताप को भी आंखों से महसूस किया जा सकता था। मानो सूरज की रोशनी सामने आने वाली हर चीज को बेध कर उसके सीने में उतर जाना चाह रही थी। भवन की छत पर लगा एंटिना और चबूतरे के पीछे खड़े पीपल के सिवा दूर-दूर तक कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।
इससे पहले कि ये चारों पांव भवन की सीमा में प्रवेश करते पीछे से आते घने काले बादल के सघन झुंड ने पूरे गांव के आसमान और सूरज के बीच डेरा जमा लिया। उनके भवन के भीतर घुसते-घुसते अंधकार ने वहां अपना साम्राज्य फैला लिया था। जो आखिरी दृश्य आंखों के सामने आयी थी वो भवन के भीतर बैठे लोगों की पगड़ियों और घूंघट काढ़े बैठी महिलाओं की छाया थी। उसके बाद कुछ दिखा तो बस स्याह अंधेरा। स्याह अंधेरे के बीच सिर्फ लोगों की आवाज सुनाई दे रही थी। कमरे में बैठे सभी लोग एक दूसरे से परिचित थे सिवा उन दोनों के जिनके आने से पहले ही अंधेरा छा गया था। बैठक चुंकि भरी दोपहर में हो रही थी इसलिए रोशनी का इंतजाम पहले से नहीं किया गया था। कमरे में भीड़ थी और भीड़ के बीच घिरा एक पिता भी था। कमरे में बैठे लोग फैसला कर के आए थे,उन्हें कोई दलील नहीं सुननी थी। दरअसल कमरे में लोग नहीं एक भीड़ थी जो फैसला पहले करती है और विचार बाद में । अचानक छाये इस अंधेरे में किसी का चेहरा तो नजर नहीं आ रहा था लेकिन उनकी बातचीत से उनका चरित्र साफ दिख रहा था।
उसे छोड़ेंगे नहीं...
दोष केवल छोरे का नहीं
हां छोरी का भी है
मैं तो कहता हूं कि उसके मां-बाप का भी है
हां....संस्कार तो घर से ही मिलते हैं...
सजा तो उन्हें भी मिलनी चाहिए...
हां...ऐसी मिलनी चाहिए कि आने वाले सात जन्मों तक लोगों को याद रहे
हां और दूसरे छोरे-छोरियों को भी सबक मिल सके...
बातचीत में वक्त बीतता जा रहा था...अंधेरा और घना होता जा रहा था। तीन लोग थे बाकी भीड़ थी...लोग सहमे हुए थे भीड़ अंधेरे में और भी अंधी हो रही थी। अचानक मेघ गर्जना के साथ तेज बारिश शुरू हो गई और बिजली की तेज चमक जब कुछ क्षण के लिए अंधेरे को चीरती हुए कमरे में पहुंची तो सिर्फ 6 आंखे खुली थी। सभी आंखों ने क्षण भर में ही एक दूसरे से बातें कर ली।
पंचायत भवन के भीतर अभी भी अंधेरा छाया है। मेघ मानो पंचायत भवन को वहीं पर जल समाधि देना चाहती हो। पहाड़ी के जिस रास्ते से चार कदम भवन की ओर आये थे उसी रास्ते पर अब छः कदम वापस जा रहे हैं अपनी गति से उपर पहाड़ पर...जहां ना तो काले बादल है और ना ही तेज धूप, हवा के हल्के झोंके से मौसम बदल चुका है।
Good one
जवाब देंहटाएंइशारा शायद खाप पंचायत की तरफ !!
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