रविवार, 30 मई 2021

जाग

 

जाग....

अक्षर जुगनु है

शब्द मशाल

संदेश रोशनी है

जाग

डूबा अंधेरा है

मन मृगतृष्णा 

सच सूरज है

जाग

जंगल घना है

रास्ता वीरान 

मंजिल पाना है

जाग

अंतरिक्ष अनंत है

टूटे तारे संग हैं

होगी ख्वाहिश पूरी

जाग

सागर अथाह है

आया चक्रवात है

हाथ में पतवार है

जाग

श्मशान की राख है

सामने चांडाल है

उठा गांडीव अर्जुन

जाग

तुझमें मैं हूं

मुझमें तू है

मत खोल आंखे

जाग

 ...............;

 

 

 

26 टिप्‍पणियां:

  1. वाह,हताश मन में आशा का संचार करती बेहतरीन कविता

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  2. Very nice sir.. Aap to hamesha se bahut acha hi likhte ho... Aapse bahut kuch shikhne ko mila hai or aap aapna ashirwadh mujhpr hamesha banaye rakhe..

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  3. पूरे दिन में अब कुछ अच्छा पढ़ा

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  4. प्रेरणादायक ...
    सर को सादर प्रणाम ...

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  5. कभी न नष्ट होने वाले अक्षरों से बने शब्दों की उम्र अन॔त होती है। शब्दों से प्रवाहित हो रही ऊर्जा अगर सकारात्मक हो तो वह निरंतर आत्मचेतना भी जाग्रत कर सकती है और सामाजिक चेतना भी विकसित कर सकती है। इन शाश्वत शब्दों की प्रबल सत्ता जब तक हमारे पास है हमें हताश और निरीह नहीं महसूस करना चाहिए। शब्द ही प्रकाश है, वही शस्त्र है ताकि मन के अंधकार से लङा जा सके और वही ताउम्र साथ देने वाला संबल भी। प्रशंसनीय कविता ।

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  6. अंतरिक्ष अनंत है

    टूटे तारे संग हैं

    होगी ख्वाहिश पूरी

    जाग
    ...बेहतरीन पंक्तियां👌

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  7. एक और नगीना, कृपया लिखते रहे।

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  8. Sir bahut behtarin Kavita hai
    Jindagi ko Prerna Dene Wali Kavita hai

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  9. Kramshaa.... Sanjeedagi samvedna San kuch piro diya apne panktiyon me... Jeevan ka Saar....kramshaa

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