लिखना-मिटाना
कभी लिख कर खुश हुआ
तो कभी मिटा कर रोया
यह भी लिखा है यहीं
लिखना है क्या
और मिटना है क्या
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पहरा
हर शब्द पर पहरा है
हर लब्ज़ पर बंदिश
हर किरदार
यहां गूंगा है
और
मालिक है मतलबी
लिखा है जो मालिक ने
बस उसे है मिटाना
बिना लिखे भी
सब कुछ
उसे है बताना
कि सिर्फ मिटा के
बिना कुछ लिखे भी
होती है क्रांति...
दिखती है नहीं कहीं
पर होती है क्रांति
लाल ही नहीं सिर्फ
होती है क्रांति
श्वेत धवल रोशनी सी
होती है क्रांति
वाणी में गुरूत्व बल
चरित्र में नदी के
तह का ठहराव
और मन में
लिखे को मिटाने का साहस
है क्रांति
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इन्तहां
ले ले जितने भी
इन्तहां चाहे
अभी जिंदा हूं मैं
मेरे बाद फिर कोई
यहां इन्तहां नहीं देगा....
Bahut khub
जवाब देंहटाएंक्या बात 👌👌
जवाब देंहटाएंअति प्रशंसनीय
जवाब देंहटाएंक्रमशः की प्रत्येक पक्तियां मेरे हृदय को छू जाती है। लिखते रहें 🙏
जवाब देंहटाएंAwesome.. Kranti ki Sahi paribhasa..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBahut khoob👏👏
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविताएँ
जवाब देंहटाएंBahut khoob...
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