सिर्फ आदमी के मरने के आंकड़े मजबूत होस रहे हैं...आदमी नहीं ! आदमी के लिए भले ही ऑक्सीजन नहीं हो, अस्पताल नहीं हो, दवाइयां नहीं हो लेकिन आकड़ों के लिए सब कुछ उपलब्ध है इनके लिए तो आईसीयू और वेंटीलेटर की भी कमी नहीं है. आदमी होने से अच्छा है आंकड़ा हो जाना। आदमी से ज्यादा आंकड़ों के प्रति व्यवस्था की हमदर्दी ने इन आंकड़ों को मजबूत होने में मदद की है। दिल्ली एनसीआर में मजबूत होते मौत के इन आकड़ों में मेरे करीबियों के नाम भी शामिल हैं। अपने करीबी रिश्तां, दोस्तों और जानने वालों को कोरोना से हार कर आदमी से आंकड़ा हो जाते देखना कितना कष्टप्रद है यह आज महसूस हो रहा है। अपने करीबियों के अस्वस्थ होने और कोरोना की लड़ाई हारने की ब्यथा के बीच अपने प्रिय मित्र,छोटा भाई और देश के वरिष्ठ पत्रकार रोहित सरदाना की मौत की खबर ने झकझोड़ दिया। कोरोना के साथ चल रहे दंगल में उसकी हार हो जाएगी इसका यकीन आज भी नहीं हो रहा। कल तक जो दंगल का हीरो था उसका आज आंकड़े का हिस्सा मात्र बन के रह जाना डराता है। मीडिया पर्सन होने के नाते इससे पहले आंकड़ों से खेलता रहता था लेकिन आज इन आंकड़ों से सच में डर लगने लगा है। मौत के आंकड़े जब अपने अपनों के मरने से मजबूत होने लगे तो डर लगना स्वभाविक है। लेकिन क्या हम कोरोना से डर के उसके सामने हथियार डाल देंगे...और खुद के आंकड़ों में तब्दील हो जाने का इंतजार करते रहेंगे या फिर इस डर को मार कर उस पर विजय श्री हासिल करेंगे। हमें लड़ कर इस डर को भगाना है। राजव्यवस्था के हर कोने पर भले ही आंकड़ों का कब्जा हो लेकिन हमारे हमारे भीतर की व्यवस्था हमारी है उस पर सिर्फ और सिर्फ हमारी हुकुमत चलती है हम अपनी व्यवस्था से राजव्यवस्था को परास्त करेंगे, आंकड़ों के डर के साम्राज्य को खत्म करेंगे क्योंकि यह सच कोई नहीं बदल सकता कि आंकड़े चाहे कितने भी मजबूत क्यों ना हो जाए वह आदमी नहीं हो सकता।
👌👌 Behtareen
जवाब देंहटाएंआज के दौर में सबसे महत्वपूर्ण संसाधन हमारा अपना मनोबल ही है। अच्छा आलेख।
जवाब देंहटाएंकोरोना से डरकर और अपने आसपास की कमजोर और लचर व्यवस्था के आगे घुटने टेक कर इंसान से आंकड़ों में तब्दील हो जाना हमारी नियति नहीं हो सकती। अगर हमें जीतना है तो अपने मन को डर के चंगुल से बाहर निकालना ही होगा....
जवाब देंहटाएंWhat an article sirji
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