ख़बर सच्ची है...
दिल्ली का चांदनी चौक जहां आम दिनों में
तो सड़कों पर लोग ठसा-ठस भरे होते हैं...बाजार की कोई भी दुकान खाली नहीं दिखती
लेकिन 26 जनवरी या 15 अगस्त के दिन जब बाजार बंद होती है तब सड़कों पर पसरा सन्नाटा बताती
है कि सड़कें कितनी चौड़ी है। जहां सड़क की चौड़ाई खत्म होती है वहीं से पैदल चलने
वालों का इलाका भी शुरू हो जाता है। सड़कों पर पसरे सन्नटे ने फुटपाथ के साथ खड़ी
साइकिल पर कुछ दोस्त तलाश लिए हैं। ये स्थानीय दुकानवाले ही हैं जो छुट्टी का आनंद
ले रहे हैं।
इसी फुटपाथ से जब वो पहले निकलती थी तो
शायद ही किसी की नज़र उस पर पड़ती थी लेकिन सन्नाटे ने भीड़ की ढाल को खत्म कर दिया
था । रोज की तरह वो आज भी सीने से बस्ते को चिपकाए, नज़रों को सड़क पर गड़ाए और चेहरे पर
दुपट्टे का नक़ाब ओढ़े तेज़ कदमों से चली जा रही थी। उसकी चौकन्ना नज़रें बार-बार पीछे
और दाएं-बाएं देखते हुए आगे बढ़ रही थी...सूनी सड़क पर उसकी कदमों की आहट साफ सुनी
जा सकती थी। फुटपाथ पर खड़े दुकानदारों ने भी बिना एक दूसरे से बात किए उसकी
परेशानी का अंदाजा लगा लिया था। और जब वो इनके पास से गुजरी तो...उनमे से एक ने
पूछा भी ।
कोई परेशानी...कोई पीछा तो नहीं कर रहा
है ?
लेकिन जवाब देने की बजाय उसने अपनी गति
बढ़ा दी ...और लगभग दौड़ते हुए आगे गली में मुड़ गई...
दुकानदार दोस्त इससे पहले कि सामान्य हो
पाते एक चीख सन्नाटे को चरती हुए उनके कानों को भेद गई। बिना एक पल भी गवाए वो सभी
गली की ओर भागे....लेकिन वहां कोई नहीं था। गली के भीतर वैसे तो सभी दुकानें बंद
थी लेकिन लाल किले से दिए प्रधानमंत्री के भाषण को सुनने के बाद छब्बन मियां ने
अपनी सैलून की सफाई करने के लिए शटर को अभी-अभी खोला था। चारां छब्बन मियां के पास
पहुंचे, क्षण भर में ही चारों की आंखों ने दुकान का एक्स-रे कर लिया। फिर एक
ने पूछा
ये आवाज कैसी थी ? तुमने सुनी !
हां...कोई लड़की थी... शटर उठाते ही वो
चीख पड़ी...
और दौड़ते हुए गली में कहीं गुम हो गई...
तुम जानते थे उसे...दूसरे ने सवाल
किया...
नहीं...
तुम्हारे शटर उठाने से वो क्यों चीखी...? तीसरे ने सवाल दागा...
मुझे क्या पता...!
तुमने छुट्टी के दिन दुकान क्यों खोली
है...? किसके बाल काटने हैं ? चौथे के लगातार दो सवालों के बाद छब्बन
मियां के चेहरे के भाव बदलने लगे थे।
उसने गंभीर और शांत स्वर में चारों से
पूछा...
तुम्हारा मतलब क्या है ? तुम जानना क्या चाहते हो ?
ज्यादा बनने की कोशिश मत करो...
बताओ वो क्यों चीखी थी...?
तुम क्या बकवास कर रहे हो...?
मुझे क्या पता वो क्यों चीखी...? उसी से पूछो वो क्यों चीखी ?
ठीक है पूछ लेंगे उसी से...उसे सामने तो
लाओ ?
बातें बढ़ती जा रही थी... बातचीत
धीरे-धीरे शोर में तब्दील होती जा रही थी। शोर से सन्नाटे में खलल पड़ रही
थी...दूसरे लोग भी अब गली में जमा होने लगे थे। शोर सुन कर सबसे पहले छब्बन मियां
का भाई सैलून वाली गली में पहुंचा था। मामले को समझने के बाद उसने अपने भाई को
शांत कराते हुए कहा...
राधेश्याम जी आप लोग तो मुझे जानते हो, दशकों से हमलोग यहां रहते आये हैं....ये
बात भाई साहब कैसे बता सकते हैं कि लड़की क्यों चीखी ?
ये सवाल तो लड़की से ही पूछा जाना
चाहिए...ये तो वही बता सकती है ?
मियां इतना दिमाग तो हमें भी है कि ये
बात लड़की बेहतर बता सकती है ...
अब अपने भाई साहब से कहो कि वो लड़की को
सामने लाए !
लड़की को मैं कैसे सामने ला सकता हूं...? छब्बन मियां बीच में ही बोल पड़ा ।
तुम्हारा मतलब है कि मैंने लड़की को छुपा
कर रखा है...बकवास कर रहे हो तुमसब ?
भीड़ बढ़ती जा रही थी...दोनों तरफ से लोग
जमा होते जा रहे थे। सन्नाटे की जगह शोर और तनाव ने ले लिया था। स्थानीय थाने को
भी भीड़ के इक्कठा होने की ख़बर मिल चुकी थी और इससे पहले कि मामला बिगड़ता पुलिस ने
मामले को संभाल लिया । पुलिस ने दोनों पक्षों को समझाने के बाद लड़की को तलाशने का
जिम्मा अपने उपर लेकर मामले को शांत करा दिया था। लेकिन....लड़की के छब्बन मियां की
दुकान के पास चीखने की खबर...भीड़ तक पहुंचते-पहुंचते अपनी शक्ल बदल चुकी थी। जिस
लड़की का नाम पता तलाशने के लिए पुलिस एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी। उस लड़की का पता
तो नहीं लेकिन उसका नाम सोशल मीडिया के शोधकर्ताओं को पता चल चुका था। सोशल मीडिया
पर छब्बन मियां की सैलून से गायब हुई रूपा की ख़बर वायरल हो रही थी...लोगों की
प्रतिक्रियाएं भी लगातार आ रही थी...बिना समय गवाए लोग धरा-धर अपना फैसला भी सुना
रहे थे। राधेश्याम का जो वीडियो वायरल हो रहा था उसमें वो कह रहा था कि उसके
पहुंचने से पहले ही छब्बन मियां ने लड़की को गायब कर दिया था। लड़की हमारे सामने से
उस गली में घुसी थी और उसके तुरंत बाद उसकी चीख भी हमने सुनी और जब दौड़कर हमलोग
गली में पहुंचे तो वहां केवल छब्बन मियां की दुकान खुली थी, छब्बन मियां वहां अकेला खड़ा था । उसके
आदमियों ने लड़की को गायब कर दिया था। वीडियों के अंत में एक संदेश दिया जा रहा था
कि...मासूम लड़की को मियां की चंगुल से बचाने और पुलिस प्रशासन को नींद से जगाने के
लिए अधिक से अधिक ग्रुप में इस खबर को शेयर करें । ख़बर आग की तरह फैल रही थी, प्रशासन ने अनहोनी को रोकने के लिए
इलाके में कर्फ्यु लगा दिया था। सड़क पर सन्नाटे ने एक बार फिर अपना साम्राज्य कायम
कर लिया था...
जारी है...
पार्ट 2
आईने की चीख
दिल्ली में धरती, सूरज
से मुंह छिपा रही थी। दिन में सूरज ने चांदनी चौक की छतों पर सूख रहे कपड़ों की जो
परछाई गलियों की दीवारों पर छापे थे वो मिट चुकी थी। अंधेरा धीरे-धीरे गलियों के
उजाले को लील रहा था । प्रकृति के अंधेरे को मानव निर्मित छोटे-छोट सूरजों ने हर
गली और चौक-चौराहों पर चुनौती देने के लिए सर उठा लिया था। देखते ही देखते गलियों, चौराहों
और मेन रोड पर लाइटें जगमगाने लगी थी। ये सारी बातें तो रोज की तरह सामान्य ही थी
लेकिन सड़कों और गलियों में जो चहल-पहल पहले दिखती थी उसकी जगह तनाव ने ले लिया था।
बाहर कर्फ्यु लगा था और अंदर घर में भीड़ जमा थी। तकरीबन हर घर में, घर
के सभी सदस्य टीवी वाले कमरे में ही जमा थे। नजरे टीवी स्क्रीन पर टिकी थी हर कोई
अंदर ही अंदर हालात को अपनी निजी कसौटी पर कस रहा था...फैसले ले रहा था लेकिन नजर
को जिसकी तलाश थी वो कहीं किसी को नजर नहीं आ रही थी।
इस बीच पुलिस
इलाके के सीसीटीवी फुटेज को खंगालने के बाद उस फुटेज को खोजने में कामयाब हो गई थी
जिसका जिक्र राधेश्याम अपने वायरल वीडियों में कर रहा था। सीसीटीवी फुटेज में
नकाबपोश लड़की गली के भीतर मुड़ते तो दिख रही थी लेकिन गली में मुड़ने के बाद का कोई
फुटेज पुलिस के पास उपलब्ध नहीं था। क्योंकि गली के भीतर कैमरे नहीं लगे थे।
आधिकारिक तौर पर तो फुटेज केवल पुलिस के पास थी और उसे सार्वजनिक भी नहीं किया गया
था । बावजूद इसके यह फुटेज भी वायरल हो रही थी और राधेश्याम की फुटेज साथ जोड़ कर
वायरल हो रही थी। सीसीटीवी वाले वायरल हो रहे वीडियो सबीना तक भी पहुंच चुकी
थी...उसे पता चल चुका था कि जिस चीख ने पूरे देश की हवा को गरम कर दिया था। दिल्ली
पुलिस की आईटी सेल ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी
थी।
घरों की भीड़ में
एक घर उसका भी था। वह भी टीवी स्क्रीन के सामने जुटी भीड़ का हिस्सा थी। उसकी नजरें
भी ख़बरों पर टिकी थी, जिसमें दो संप्रदाय विशेष के बीच हुई झड़प के बाद
एक की मौत की खबर आ रही थी। कानों में गली में गश्त कर रहे सुरक्षा बलों के बूटों
की टाप तेज होते होते....फिर धीमा और फिर धीरे-धीरे कम होते-होते शांत हुई ही थी
कि गली के एक कमरे की लाइट जलने के साथ निकली चीख से वातावरण में बिजली सी दौड़ गई
। बूटों की आवाज वापस धीरे-धीरे तेज होते हुए गली के कमरे तक पहुंच कर दरवाजे पर
दस्तक देती है।
ठक-ठक...
ठक-ठक-ठक...
पार्ट 2
आईने की चीख
चीख के
बाद...दरवाजे पर हुई दस्तक से पूरा परिवार सहम गया था...दरवाजा खोलने को कोई तैयार
नहीं हो रहा था लेकिन जब बाहर से आवाज आई...
पुलिस...
हम आपकी सुरक्षा
के लिए आए हैं ...दरवाजा खोलिए
आवाज सुन कर
परिवार वालों की जान में जान आई
और लड़की के भाई ने
दरवाजा खोला...
हम थाने से आए
हैं....
आपके घर से यह चीख
कैसी थी...?
कोई समस्या तो
नहीं ?
अधिकारी सवाल पूछ
रहे थे और सिपाहियों की नजरें घर को स्कैन कर रही थी।
सब कुछ सामान्य
दिखने पर...सिपाही एक जगह खड़े हो गए और उनमें से कुछ ने बाहर की तरफ रूख़ कर लिया।
अधिकारी ने फिर से
सवाल पूछा...
ये आवाज कैसी
थी...किसकी थी...उसे सामने लाओ
इस बार अधिकारी की
आवाज में थोड़ी सख्ती थी।
हुजुर...हमारी
बेटी है...उसी की चीख थी...
वजह...
वजह जो भी है उसका
आज की इस स्थिति से कोई संबंध नहीं...
देखिए हम आपकी मदद
के लिए आए हैं...यदि कोई प्रोब्लम है तो आप बता सकते हैं...
शुक्रिया
जनाब...कोई प्रोब्लम नहीं है...हमारे सोने का वक्त हो रहा है।
पुलिस वापस चली
गई...दरवाजा बंद करने के बाद पूरा परिवार...सबीना के कमरे में पहुंच गया था।
सबीना कमरे की
दीवार पर टंगे आईने में खामोशी से अपना चेहरा निहार रही थी...
करीब दो साल से
सबीना ने आईने का सामना नहीं किया था...
आज से पहले उसके
कमरे में कोई आईना था भी नहीं ...यह आईना उसके भाई ने आज ही कमरे के दीवार पर लगाई
थी अचानक आईने के सामने आने पर सबीना के मुंह से चीख फिर से निकल गई थी। लेकिन अब
वह अपनी चीख और डर पर काबू पाना चाहती है...शायद इसीलिए वो आईने के सामने खड़ी
है...उससे फिर से दोस्ती करने की कोशिश कर रही है।
सबसे पहले मां
सबीने के कमरे में पहुंचती है...और आईने के सामने खड़ी सबीना के माथे पर हाथ रखते
हुए कहती है..
सबीना...सब ठीक हो
जाएगा...खुदा उसे जरूर सजा़ देगा...
खुदा के इंसाफ पर
यकीन रखो...
सबीना बिना कुछ
बोले मां से लिपट गई...
चीख की जगह
सिसकियों ने ले ली...
सबीना की आंखों से
आंसू धाराप्रवाह बहने लगे....सीने में फूट रहे ज्वालामुखी ने आंसुओं के समंदर में
सैलाब ला दिया था...हिम्मत ने आंखों पर जो बांध बनाए थे...मां के सीने से लिपट कर
वो टूट चुके थे...भावनाएं हिलोर मार कर आंखों से बाहर आ रही थी...जमीन पर गिरने से
पहले आंसू भी सबीना के चेहरे पर रूक कर उसे सहलाना चाहते थे...पुचकारना चाहते
थे...लेकिन एसिड एटैक के बाद चेहरे पर हुई दर्जनों सर्जरी ने सबीना के चेहरे को
सपाट और छिछला कर दिया था...चेहरे पर कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहां भावना एक पल भी
ठहर पाती...कान पिघल कर गले और गाल से चिपक गई थी...नाक दोनों गाल के बीच पसर कर
रह गई थी...एसिड के प्रभाव से पिघले चेहरे का लोथरा गरदन पर आ कर खिंच गई
थी...एसिड ने 17 साल
की मासूम सबीना के चेहरे को डरावना बना दिया था...
एक समय था...सबीना
जब भी...जहां भी आईना देखती उससे मुस्कुराकर हालचाल जरूर पूछती थी। लेकिन आज वहीं
आईना सबीना को डराता है । पहली बार आईने से उसे तब डराया था जब अस्पताल से लौटने
के बाद उसने उसका सामना किया था...आईने में उसे अपना चेहरा नहीं बल्कि हादसे की
तस्वीर दिखी थी, आईने के भीतर तस्वीरों के बीच से उसे अपनी चीख
सुनाई नहीं बल्कि दिखाई भी देती थी...इसी चीख से बचने के लिए उसने पहली बार अपने
चेहरे और आईने के बीच दुपट्टे का पहरा लगाया था, अपने
चेहरे को दुपट्टे से छिपाया था। नाक, चेहरे और एक कान
से दूसरे कान तक पहुंचने के बाद दुपट्टा जब गरदन पर दो बार लिपट कर बांए कान के
नीचे खत्म हुआ...तब जाकर कहीं सबीना की चीख ने भी आराम पाई थी, सबीना
ने दुपट्टे के पीछे अपने चेहरे को केवल छिपाया ही नहीं बल्कि अपनी चीख को भी दफन
कर दिया था।
दिल्ली
में पहली बार सबीना ने आईना तब देखा था...जब छब्बन मियां गली में अपना सैलून खोल
रहे थे और सबीना उस सैलून के सामने से गुजर रही थी...तेज भागने के कारण सबीना के
चेहरे से दुपट्टे का नकाब हट गया था और सैलून की दीवार पर चिपके बड़े-बड़े आईनों में
उसे वही चेहरा दिख गया था जिसे वह हमेशा दुपट्टे से छिपा कर रखती थी...चेहरे से
हटे नकाब ने सीने में छिपे दर्द को भी बाहर ला दिया था...चीख सीने और गले को चीरते
हुए मुंह से बाहर आ गई थी।
सुबह का अखबार
दंगों की ख़बर से पटा परा था... एक युवक की मौत की ख़बर के साथ-साथ धू- धू कर जलती
गाड़ियों और दुकानों की तस्वीरों ने अखबारों की सुर्खि़यां बटोरी थी। टीवी पर
स्थिति सामान्य होने की खबर चलने लगी थी... कर्फ्यू हटा लिया गया था। सबीना की
आंखों में राहत और दुपट्टे के पीछे छिपे चेहरे पर भी खुशी देखी जा सकती थी। खुदा
ने उसके साथ इंसाफ किया था...अखबार में मरने वाले तीन लोगों की जो तस्वीर और पहचान
बताई थी उनमें से एक चेहरा उस एकतरफा प्यार करने वाले सिरफिरे आशिक का भी थी ।
सबीना अख़बार को वहीं जमीन पर रख अपने सीए क्लास के लिए निकल गई...
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अच्छी कहानी।
जवाब देंहटाएंअसत्यापित खबरों का जबरदस्त साहित्यिक वर्णन
जवाब देंहटाएंक्रमशः के साहित्यिक क्रम में एक और मोती
कृपया लिखते रहें !
शान्तनु जी,आप पढ़ते रहेंगे तो हम भी लिखते रहेंगे। पाठक की प्रतिक्रिया का कोई मोल नहीं होता...अपने बहुमूल्य शब्द खरचने के लिए शुक्रिया।
हटाएंमुकेश जी ब्लॉग की कहानी होते हुए भी हमारे समाज का एक कड़वा सच को आइना दिखा रही है। आजकल हम और हमारे समाज में सांप्रदायिक एवं धार्मिक मतभेद थोड़े बढ़ गए हैं पर ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती दोनों हाथों के टकराने से ही बसती है यह भी सत्य है। तो कमियां दोनों में ही है किसी में कम या किसी में ज्यादा। इसीलिए एक अविश्वास की खाई बन चुकी है, इस कहानी का इस हिस्से का यथार्थ चित्रण किया है, इसके बाद जो सोशल मीडिया का चित्रण इस कहानी में हुआ है आजकल की सोशल मीडिया लाइक्स और कमेंट की दुनिया का एक कटु सत्य है ज्यादा लाइक सो कमेंट पाने में न्यूज़ को वायरल होने में समय नहीं लगता है फिर शुरू हो जाता है प्रतिक्रियाओं का दौर जो उस उन्माद को और बढ़ा देता है,
हटाएंआखिरी हिस्से में जब कहानी में ट्विस्ट आता है और सच में सच्चाई का बोध कराती है, उस एसिड अटैक पीड़िता की दर्द बयां करती है और उस आईने से बहुत सारे सवाल पूछती है। "असल में वह विभक्त चेहरा उसे लड़की का नहीं हमारे समाज का है"
आप एक लेखनी के पुजारी हैं तो आपको ढेरों शुभकामनाएं और साधुवाद
धन्यवाद
हटाएंअनुराग कुलश्रेष्ठ
Acid attack की त्रासदी से जूझ रही लडकी की पीडा और भयभीत मनः स्थिति का मार्मिक विश्लेषण झकझोर कर रख देता है। ईश्वर के प्रबल और निष्पक्ष न्याय की सत्ता को स्थापित करता हुआ कहानी का अंत सुंदर है।हमें अपने कर्मों का फल मिल ही जाता है।ईश्वर की अदालत किसी की पैरवी नहींसुनती है।वहाँ कर्म ही एकमात्र कसौटी है।
जवाब देंहटाएंआपने ब्लॉग पढ़ने के लिए समय निकला और प्रतिक्रिया स्वरुप अपने बहुमूल्य शब्द मोती खर्च किए...आपका शुक्रिया।
हटाएंकिसी भी कहानी में रुचि बनाये रखने के लिए सबसे जरूरी होता है अनावश्यक शब्दों और अनावश्यक खिंचाव से उसे बचाना। बधाई है! सधी हुई कथा अंत तक बांधे रखती है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नवीन जी...पढ़ने के लिए समय निकालने और फिर प्रतिक्रिया लिखने के लिए और ज्यादा वक्त निकालने के लिए...पुनः धन्यवाद
हटाएंघर मेरा है, इससे साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी मेरी है और समाज हमारा है, इससे साफ़ रखने की ज़िम्मेदारी हमारी है। मेरे ख्याल से समाज को साफ़ रखने का सबसे अच्छा झाड़ू कलम ही हो सकता है। आप जैसे कलमकर्ता, समाज का प्रथम आव्शयकता है। आप अपना 'क्रमशः' जारी रखिये।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंVery good mukesh ji
जवाब देंहटाएंExcellent depiction
जवाब देंहटाएंKhoobsoorat
जवाब देंहटाएंZabardast
जवाब देंहटाएं